जब दोनो का प्रेम सत्य है तो डर कैसा,
प्रेम हैं तोह बिछड़ने का डर क्यों,
जब डर है तो प्रेम कैसा,
प्रेम तो वो परिभाषा है जिसमे न खोने का डर , ना पाने की चाह ,
जो बिन शब्दो को बोले समझ जाए मन की बात,
उससे क्या छुपाना, जो छुपाना पड़े वो विश्वास कहां,
जो गलती होने पर गलती याद रखे वो कैसा साथी,
अच्छाई छोड़ कमी जो देखे, वो साथ कैसे निभाएगा,
जब मन न मिलता एक दूसरे से, फिर उस रिश्ते में क्यों रहना ।
By :- Kshma Rastogi
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