यह दुनिया ऊपरी हंसी देखती है , आंखों में छिपे आंसु नही ,
यह दुनिया कड़वे बोल सुनती है , उसके पीछे मीठी बोली नही सुनती ,
कहने को हजार लोग अपने लगते हैं , जब पीछे मुड़ के देखते हैं सिर्फ अपनी परछाई ही दिखाई देती है ,
सुख में सभी आना चाहते है , दुख में सब चले जाते हैं ,
यह दुनिया एक दर्पण की तरह है, जिसमे देखो तो अपनी प्रतिछाया, ना देखो तो कोई प्रतिछाया नही ।
By :- Kshma Rastogi
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